भारत में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाया जाता है और यह भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। हर वर्ष 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्त्वपूर्ण स्मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है।
26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार यह सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया।
भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करने वाले पर्याप्त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है।
यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती।
इतिहास
भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्य रात्रि में राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सैनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।
भारतीय संविधान सभा
उसी समय भारतीय संविधान सभा की बैठकें होती रहीं, जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई, जिसमें भारतीय नेताओं और अंग्रेज़ कैबिनेट मिशन ने भाग लिया। भारत को एक संविधान देने के विषय में कई चर्चाएँ, सिफारिशें और वाद - विवाद किया गया। कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया गया जो 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ। भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ कि मुद्रा पर ज्योर्ज 6 की तस्वीरें थी। आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के संविधान को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की और संविधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली, 25 नवम्बर, 1949 को 211 विद्वानों द्वारा 2 महिने और 11 दिन में तैयार देश के संविधान को मंजूरी मिली।
विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए। और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तथा 21 तोपों की सलामी के बाद इर्विन स्टेडियम में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी। 26 जनवरी का महत्त्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। इस तरह से 26 जनवरी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। यह एक संयोग ही था कि कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस बन गया था। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष राष्ट्रभर में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
कांग्रेस अधिवेशन और मुस्लिम लीग
26 जनवरी सन् 1930 को ही कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में रावी के किनारे पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव पास करके आज़ादी का जश्न मनाया था। उसी वक़्त से सारे देश में हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ, जिसमें 296 सदस्यों की सभा में से मुस्लिम लीग को 73 और कांग्रेस को 211 स्थान मिले थे।
कांग्रेस के नेताओं ने पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, गोविन्द बल्लभ पन्त, श्री बी. जी. खेर, डॉ. पुरुषोत्तम दास टण्डन, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ, श्री आसफ़ अली, श्री रफ़ी अहमद किदवाई, श्री कृष्ण सिन्हा, श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी, आचार्य जे. बी. कृपलानी और श्री कृष्णमाचारी आदि थे। इसके अलावा कांग्रेस सेना मेम्बरों में कांग्रेस द्वारा नामांकित सदस्यों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, श्री एन. गोपाल स्वामी अयंगर, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, डॉ. एम. आर. जयकर, श्री अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर, पं. हृदयनाथ कुंजरू, श्री हरी सिंह गौड़ और प्रोफेसर के. टी.शाह आदि थे। संविधान सभा में कुछ महिलायें भी थीं, जिनमें श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, श्रीमती हंसा मेहता, और श्रीमती रेणुका राय प्रमुख थीं। मुस्लिम लीग में नवाबज़ादा लियाक़त अली ख़ाँ, ख़्वाजा नाज़िमुद्दीम, श्री एच. एस. सुहरावर्दी, सर फ़िरोज़ ख़ाँ नून और मोहम्मद जफ़रुल्ला ख़ाँ, प्रमुख थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष थे। 9 दिसम्बर सन् 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन होना निश्चित हुआ। मुस्लिम लीन ने दो संविधान सभाओं की माँग की जिसमें से एक पाकिस्तान के लिए बनाई और दूसरी भारत के लिए।
भारत का विभाजन
3 जून सन् 1947 को माउण्ट बेटन योजना प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रस्ताव किया गया कि भारत को दो भागों, भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया जाए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस योजना को स्वीकार कर लिया। अप्रैल सन् 1947 में बड़ौदा, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, रीवा और पटियाला के देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित हो चुके थे। और 14 जुलाई सन् 1947 तक केवल दो देशी राज्यों जम्मू–कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर बाकी देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में भाग लेने आ गए थे। 15 अगस्त सन् 1947 को भारत के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान से होकर भारत आज़ाद हुआ। पं. जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। अक्टूबर सन् 1947 तक जम्मू और कश्मीर भी भारत में शामिल हो गया और नवम्बर सन् 1948 में हैदराबाद भी।
संविधान पारित
इस प्रकार संसद भारत की मुकम्मल प्रतिनिधि सभा बन गई। 29 अगस्त सन् 1947 के प्रस्ताव के अनुसार एक प्रारूप समिति क़ायम की गई, जिसके सात मेम्बर थे और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर उसके चेयरमैन थे। इस समिति ने 21 फ़रवरी सन् 1948 को अपना निर्णय प्रस्तुत कर दिया, जो 4 नवम्बर, सन् 1948 को संसद के सामने रखा गया। इस पर 9 नवम्बर सन् 1948 से 17 अक्टूबर सन् 1949 तक दूसरी खुवांदगी (वाचन) चलती रही जिसमें 7635 धाराएँ पेश की गईं। 14 नवम्बर सन् 1949 से 26 नवम्बर सन् 1949 तक तीसरी खुवांदगी हुई और 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पर संविधान सभा हस्ताक्षर होकर संविधान पारित हो गया। 24 जनवरी सन् 1950 को संविधान सभा का अन्तिम अधिवेशन हुआ और इसमें नये संविधान के अनुसार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। 26 जनवरी सन् 1950 से नया संविधान लागू किया गया। उसी दिन से हर साल 26 जनवरी को भारत में गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
गणतंत्र की यात्रा
58 वर्ष पहले 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की। ब्रिटिश राज से छुटकारा पाने 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राज्य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्ट्र में बड़े उत्साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है। एक ब्रिटिश उप निवेश से एक सम्प्रभुतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना रही। यह लगभग 2 दशक पुरानी यात्रा थी जो 1930 में एक सपने के रूप में संकल्पित की गई और 1950 में इसे साकार किया गया। भारतीय गणतंत्र की इस यात्रा पर एक नज़र डालने से हमारे आयोजन और भी अधिक सार्थक हो जाते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर सत्र
गणतंत्र राष्ट्र के बीज 31 दिसंबर, 1929 की मध्य रात्रि में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के लाहौर सत्र में बोए गए थे। यह सत्र पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। उस बैठक में उपस्थित लोगों ने 26 जनवरी को "स्वतंत्रता दिवस" के रूप में अंकित करने की शपथ ली थी ताकि ब्रिटिश राज से पूर्ण स्वतंत्रता के सपने को साकार किया जा सके। लाहौर सत्र में नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया गया। यह निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत से अनेक भारतीय राजनीतिक दलों और भारतीय क्रांतिकारियों ने सम्मान और गर्व सहित इस दिन को मनाने के प्रति एकता दर्शाई।
भारतीय संविधान सभा की बैठकें
भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को की गई, जिसका गठन भारतीय नेताओं और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के बीच हुई बातचीत के परिणाम स्वरूप किया गया था। इस सभा का उद्देश्य भारत को एक संविधान प्रदान करना था जो दीर्घ अवधि प्रयोजन पूरे करेगा और इसलिए प्रस्तावित संविधान के विभिन्न पक्षों पर गहराई से अनुसंधान करने के लिए अनेक समितियों की नियुक्ति की गई। सिफारिशों पर चर्चा, वादविवाद किया गया और भारतीय संविधान पर अंतिम रूप देने से पहले कई बार संशोधित किया गया तथा 3 वर्ष बाद 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।
संविधान प्रभावी
जब भारत 15 अगस्त, 1947 को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, इसने स्वतंत्रता की सच्ची भावना का आनन्द 26 जनवरी, 1950 को उठाया जब भारतीय संविधान प्रभावी हुआ। इस संविधान से भारत के नागरिकों को अपनी सरकार चुनकर स्वयं अपना शासन चलाने का अधिकार मिला। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और इसके बाद राष्ट्रपति का काफिला 5 मील की दूरी पर स्थित इर्विन स्टेडियम पहुंचा जहां उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। तब से ही इस ऐतिहासिक दिवस, 26 जनवरी को पूरे देश में एक त्यौहार की तरह और राष्ट्रीय भावना के साथ मनाया जाता है। इस दिन का अपना अलग महत्व है जब भारतीय संविधान को अपनाया गया था। इस गणतंत्र दिवस पर महान भारतीय संविधान को पढ़कर देखें जो उदार लोकतंत्र का परिचायक है, जो इसके भण्डार में निहित है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन
गणतंत्र दिवस हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय त्योहार है, इस दिन राष्ट्रपति इंडिया गेट पर भारत के सब राज्यों से आए हुए प्रतिनिधियों तथा भारत की तीनों सेनाओं की सलामी लेते हैं। अनेक प्रकार की सुन्दर–सुन्दर झाँकियाँ नाच–गाने, बैण्ड–बाजे, हाथी, ऊँट, घोड़ों की सवारियाँ, टेंक, तोप, समुद्री जहाज़ और हवाई जहाज़ के नमूने कृषि और उद्योग की झाँकियाँ, स्कूली बच्चों के नाच–गाने करते हुए ग्रुप राष्ट्रपति को सलामी देते हुए चलते हैं। जो कि विजय चौक से शुरू होकर लाल क़िले तक जाते हैं। इस उत्सव में किसी दूसरे देश का कोई मेहमान बुलाया जाता है। उस दिन दर्शकों की इतनी भीड़ होती है कि इंडिया गेट पर ऐसा मालूम होता है जैसे इन्सानों का समुद्र लहरा रहा हो। रात को इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, सेंट्रल सेक्रेटेरियट, संसद भवन तथा मुख्य सरकारी इमारतों पर रोशनी की जाती है।
असली मायनों में भारत की जनता को राज्य 26 जनवरी सन् 1950 से ही प्राप्त हुआ। 15 अगस्त सन् 1947 को हम आज़ाद ज़रूर हो गए थे लेकिन हमारा कोई संविधान लागू नहीं हुआ था और न ही कोई गणराज्य का राष्ट्रपति था।
अंग्रेज़ भारत को छोड़कर चले गए और 26 जनवरी को जनता का राज्य हुआ, इसलिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्रता दिवस मनाते हैं। जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है।
इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और राष्ट्रगान होता है। इस प्रकार परेड आरंभ होती है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्हें आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।
राष्ट्रपति महोदय के सामने से खुली जीपों में वीर सैनिक गुजरते हैं। भारत के राष्ट्रपति, जो भारतीय सशस्त्र बल, के मुख्य कमांडर हैं, विशाल परेड की सलामी लेते हैं। भारतीय सेना द्वारा इसके नवीनतम हथियारों और बलों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे टैंक, मिसाइल, राडार आदि। इसके शीघ्र बाद राष्ट्रपति द्वारा सशस्त्र सेना के सैनिकों को बहादुरी के पुरस्कार और मेडल दिए जाते हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व साहस दिखाया और ऐसे नागरिकों को भी सम्मानित किया जाता है जिन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में वीरता के अलग-अलग कारनामे किए। इसके बाद सशस्त्र सेना के हेलिकॉप्टर दर्शकों पर गुलाब की पंखुडियों की बारिश करते हुए फ्लाई पास्ट करते हैं।
सांस्कृतिक परेड
सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्कृतिक परेड होती है। विभिन्न राज्यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्येक राज्य अपने अनोखे त्यौहारों, ऐतिहासिक स्थलों और कला का प्रदर्शन करते हैं। यह प्रदर्शनी भारत की संस्कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्यौहार का रंग देती है। विभिन्न सरकारी विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों की झांकियां भी राष्ट्र की प्रगति में अपने योगदान प्रस्तुत करती है। इस परेड का सबसे खुशनुमा हिस्सा तब आता है जब बच्चे, जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हाथियों पर बैठकर सामने आते हैं। पूरे देश के स्कूली बच्चे परेड में अलग-अलग लोक नृत्य और देश भक्ति की धुनों पर गीत प्रस्तुत करते हैं। परेड में कुशल मोटर साइकिल सवार, जो सशस्त्र सेना कार्मिक होते हैं, अपने प्रदर्शन करते हैं। परेड का सर्वाधिक प्रतीक्षित भाग फ्लाई पास्ट है जो भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाता है। फ्लाई पास्ट परेड का अंतिम पड़ाव है, जब भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान राष्ट्रपति का अभिवादन करते हुए मंच पर से गुजरते हैं।
प्रधानमंत्री की रैली
गणतंत्र दिवस का आयोजन कुल मिलाकर तीन दिनों का होता है और 27 जनवरी को इंडिया गेट पर इस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री की रैली में एनसीसी केडेट्स द्वारा विभिन्न चौंका देने वाले प्रदर्शन और ड्रिल किए जाते हैं।
लोक तरंग
सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों के साथ मिलकर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 24 से 29 जनवरी के बीच ‘’लोक तरंग – राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह’’ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में लोगों को देश के विभिन्न भागों से आए रंग बिरंगे और चमकदार और वास्तविक लोक नृत्य देखने का अनोखा अवसर मिलता है।
बीटिंग द रिट्रीट
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा एबाइडिड विद मी (यह महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कहीं जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्स बजाई जाती हैं, जो काफ़ी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार यह सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया।
भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करने वाले पर्याप्त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है।
यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती।
इतिहास
भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्य रात्रि में राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सैनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।
भारतीय संविधान सभा
उसी समय भारतीय संविधान सभा की बैठकें होती रहीं, जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई, जिसमें भारतीय नेताओं और अंग्रेज़ कैबिनेट मिशन ने भाग लिया। भारत को एक संविधान देने के विषय में कई चर्चाएँ, सिफारिशें और वाद - विवाद किया गया। कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया गया जो 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ। भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ कि मुद्रा पर ज्योर्ज 6 की तस्वीरें थी। आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के संविधान को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस की और संविधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली, 25 नवम्बर, 1949 को 211 विद्वानों द्वारा 2 महिने और 11 दिन में तैयार देश के संविधान को मंजूरी मिली।
विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए। और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तथा 21 तोपों की सलामी के बाद इर्विन स्टेडियम में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी। 26 जनवरी का महत्त्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। इस तरह से 26 जनवरी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। यह एक संयोग ही था कि कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस बन गया था। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष राष्ट्रभर में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
कांग्रेस अधिवेशन और मुस्लिम लीग
26 जनवरी सन् 1930 को ही कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में रावी के किनारे पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव पास करके आज़ादी का जश्न मनाया था। उसी वक़्त से सारे देश में हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ, जिसमें 296 सदस्यों की सभा में से मुस्लिम लीग को 73 और कांग्रेस को 211 स्थान मिले थे।
कांग्रेस के नेताओं ने पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, गोविन्द बल्लभ पन्त, श्री बी. जी. खेर, डॉ. पुरुषोत्तम दास टण्डन, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ, श्री आसफ़ अली, श्री रफ़ी अहमद किदवाई, श्री कृष्ण सिन्हा, श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी, आचार्य जे. बी. कृपलानी और श्री कृष्णमाचारी आदि थे। इसके अलावा कांग्रेस सेना मेम्बरों में कांग्रेस द्वारा नामांकित सदस्यों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, श्री एन. गोपाल स्वामी अयंगर, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, डॉ. एम. आर. जयकर, श्री अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर, पं. हृदयनाथ कुंजरू, श्री हरी सिंह गौड़ और प्रोफेसर के. टी.शाह आदि थे। संविधान सभा में कुछ महिलायें भी थीं, जिनमें श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, श्रीमती हंसा मेहता, और श्रीमती रेणुका राय प्रमुख थीं। मुस्लिम लीग में नवाबज़ादा लियाक़त अली ख़ाँ, ख़्वाजा नाज़िमुद्दीम, श्री एच. एस. सुहरावर्दी, सर फ़िरोज़ ख़ाँ नून और मोहम्मद जफ़रुल्ला ख़ाँ, प्रमुख थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष थे। 9 दिसम्बर सन् 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन होना निश्चित हुआ। मुस्लिम लीन ने दो संविधान सभाओं की माँग की जिसमें से एक पाकिस्तान के लिए बनाई और दूसरी भारत के लिए।
भारत का विभाजन
3 जून सन् 1947 को माउण्ट बेटन योजना प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रस्ताव किया गया कि भारत को दो भागों, भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया जाए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस योजना को स्वीकार कर लिया। अप्रैल सन् 1947 में बड़ौदा, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, रीवा और पटियाला के देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित हो चुके थे। और 14 जुलाई सन् 1947 तक केवल दो देशी राज्यों जम्मू–कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर बाकी देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में भाग लेने आ गए थे। 15 अगस्त सन् 1947 को भारत के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान से होकर भारत आज़ाद हुआ। पं. जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। अक्टूबर सन् 1947 तक जम्मू और कश्मीर भी भारत में शामिल हो गया और नवम्बर सन् 1948 में हैदराबाद भी।
संविधान पारित
इस प्रकार संसद भारत की मुकम्मल प्रतिनिधि सभा बन गई। 29 अगस्त सन् 1947 के प्रस्ताव के अनुसार एक प्रारूप समिति क़ायम की गई, जिसके सात मेम्बर थे और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर उसके चेयरमैन थे। इस समिति ने 21 फ़रवरी सन् 1948 को अपना निर्णय प्रस्तुत कर दिया, जो 4 नवम्बर, सन् 1948 को संसद के सामने रखा गया। इस पर 9 नवम्बर सन् 1948 से 17 अक्टूबर सन् 1949 तक दूसरी खुवांदगी (वाचन) चलती रही जिसमें 7635 धाराएँ पेश की गईं। 14 नवम्बर सन् 1949 से 26 नवम्बर सन् 1949 तक तीसरी खुवांदगी हुई और 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पर संविधान सभा हस्ताक्षर होकर संविधान पारित हो गया। 24 जनवरी सन् 1950 को संविधान सभा का अन्तिम अधिवेशन हुआ और इसमें नये संविधान के अनुसार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। 26 जनवरी सन् 1950 से नया संविधान लागू किया गया। उसी दिन से हर साल 26 जनवरी को भारत में गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है।
गणतंत्र की यात्रा
58 वर्ष पहले 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की। ब्रिटिश राज से छुटकारा पाने 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राज्य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्ट्र में बड़े उत्साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है। एक ब्रिटिश उप निवेश से एक सम्प्रभुतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना रही। यह लगभग 2 दशक पुरानी यात्रा थी जो 1930 में एक सपने के रूप में संकल्पित की गई और 1950 में इसे साकार किया गया। भारतीय गणतंत्र की इस यात्रा पर एक नज़र डालने से हमारे आयोजन और भी अधिक सार्थक हो जाते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर सत्र
गणतंत्र राष्ट्र के बीज 31 दिसंबर, 1929 की मध्य रात्रि में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के लाहौर सत्र में बोए गए थे। यह सत्र पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। उस बैठक में उपस्थित लोगों ने 26 जनवरी को "स्वतंत्रता दिवस" के रूप में अंकित करने की शपथ ली थी ताकि ब्रिटिश राज से पूर्ण स्वतंत्रता के सपने को साकार किया जा सके। लाहौर सत्र में नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मार्ग प्रशस्त किया गया। यह निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत से अनेक भारतीय राजनीतिक दलों और भारतीय क्रांतिकारियों ने सम्मान और गर्व सहित इस दिन को मनाने के प्रति एकता दर्शाई।
भारतीय संविधान सभा की बैठकें
भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को की गई, जिसका गठन भारतीय नेताओं और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के बीच हुई बातचीत के परिणाम स्वरूप किया गया था। इस सभा का उद्देश्य भारत को एक संविधान प्रदान करना था जो दीर्घ अवधि प्रयोजन पूरे करेगा और इसलिए प्रस्तावित संविधान के विभिन्न पक्षों पर गहराई से अनुसंधान करने के लिए अनेक समितियों की नियुक्ति की गई। सिफारिशों पर चर्चा, वादविवाद किया गया और भारतीय संविधान पर अंतिम रूप देने से पहले कई बार संशोधित किया गया तथा 3 वर्ष बाद 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।
संविधान प्रभावी
जब भारत 15 अगस्त, 1947 को एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, इसने स्वतंत्रता की सच्ची भावना का आनन्द 26 जनवरी, 1950 को उठाया जब भारतीय संविधान प्रभावी हुआ। इस संविधान से भारत के नागरिकों को अपनी सरकार चुनकर स्वयं अपना शासन चलाने का अधिकार मिला। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और इसके बाद राष्ट्रपति का काफिला 5 मील की दूरी पर स्थित इर्विन स्टेडियम पहुंचा जहां उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। तब से ही इस ऐतिहासिक दिवस, 26 जनवरी को पूरे देश में एक त्यौहार की तरह और राष्ट्रीय भावना के साथ मनाया जाता है। इस दिन का अपना अलग महत्व है जब भारतीय संविधान को अपनाया गया था। इस गणतंत्र दिवस पर महान भारतीय संविधान को पढ़कर देखें जो उदार लोकतंत्र का परिचायक है, जो इसके भण्डार में निहित है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन
गणतंत्र दिवस हमारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय त्योहार है, इस दिन राष्ट्रपति इंडिया गेट पर भारत के सब राज्यों से आए हुए प्रतिनिधियों तथा भारत की तीनों सेनाओं की सलामी लेते हैं। अनेक प्रकार की सुन्दर–सुन्दर झाँकियाँ नाच–गाने, बैण्ड–बाजे, हाथी, ऊँट, घोड़ों की सवारियाँ, टेंक, तोप, समुद्री जहाज़ और हवाई जहाज़ के नमूने कृषि और उद्योग की झाँकियाँ, स्कूली बच्चों के नाच–गाने करते हुए ग्रुप राष्ट्रपति को सलामी देते हुए चलते हैं। जो कि विजय चौक से शुरू होकर लाल क़िले तक जाते हैं। इस उत्सव में किसी दूसरे देश का कोई मेहमान बुलाया जाता है। उस दिन दर्शकों की इतनी भीड़ होती है कि इंडिया गेट पर ऐसा मालूम होता है जैसे इन्सानों का समुद्र लहरा रहा हो। रात को इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, सेंट्रल सेक्रेटेरियट, संसद भवन तथा मुख्य सरकारी इमारतों पर रोशनी की जाती है।
असली मायनों में भारत की जनता को राज्य 26 जनवरी सन् 1950 से ही प्राप्त हुआ। 15 अगस्त सन् 1947 को हम आज़ाद ज़रूर हो गए थे लेकिन हमारा कोई संविधान लागू नहीं हुआ था और न ही कोई गणराज्य का राष्ट्रपति था।
अंग्रेज़ भारत को छोड़कर चले गए और 26 जनवरी को जनता का राज्य हुआ, इसलिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्रता दिवस मनाते हैं। जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है।
इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और राष्ट्रगान होता है। इस प्रकार परेड आरंभ होती है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्हें आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।
राष्ट्रपति महोदय के सामने से खुली जीपों में वीर सैनिक गुजरते हैं। भारत के राष्ट्रपति, जो भारतीय सशस्त्र बल, के मुख्य कमांडर हैं, विशाल परेड की सलामी लेते हैं। भारतीय सेना द्वारा इसके नवीनतम हथियारों और बलों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे टैंक, मिसाइल, राडार आदि। इसके शीघ्र बाद राष्ट्रपति द्वारा सशस्त्र सेना के सैनिकों को बहादुरी के पुरस्कार और मेडल दिए जाते हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व साहस दिखाया और ऐसे नागरिकों को भी सम्मानित किया जाता है जिन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में वीरता के अलग-अलग कारनामे किए। इसके बाद सशस्त्र सेना के हेलिकॉप्टर दर्शकों पर गुलाब की पंखुडियों की बारिश करते हुए फ्लाई पास्ट करते हैं।
सांस्कृतिक परेड
सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्कृतिक परेड होती है। विभिन्न राज्यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्येक राज्य अपने अनोखे त्यौहारों, ऐतिहासिक स्थलों और कला का प्रदर्शन करते हैं। यह प्रदर्शनी भारत की संस्कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्यौहार का रंग देती है। विभिन्न सरकारी विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों की झांकियां भी राष्ट्र की प्रगति में अपने योगदान प्रस्तुत करती है। इस परेड का सबसे खुशनुमा हिस्सा तब आता है जब बच्चे, जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हाथियों पर बैठकर सामने आते हैं। पूरे देश के स्कूली बच्चे परेड में अलग-अलग लोक नृत्य और देश भक्ति की धुनों पर गीत प्रस्तुत करते हैं। परेड में कुशल मोटर साइकिल सवार, जो सशस्त्र सेना कार्मिक होते हैं, अपने प्रदर्शन करते हैं। परेड का सर्वाधिक प्रतीक्षित भाग फ्लाई पास्ट है जो भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाता है। फ्लाई पास्ट परेड का अंतिम पड़ाव है, जब भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान राष्ट्रपति का अभिवादन करते हुए मंच पर से गुजरते हैं।
प्रधानमंत्री की रैली
गणतंत्र दिवस का आयोजन कुल मिलाकर तीन दिनों का होता है और 27 जनवरी को इंडिया गेट पर इस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री की रैली में एनसीसी केडेट्स द्वारा विभिन्न चौंका देने वाले प्रदर्शन और ड्रिल किए जाते हैं।
लोक तरंग
सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों के साथ मिलकर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 24 से 29 जनवरी के बीच ‘’लोक तरंग – राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह’’ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में लोगों को देश के विभिन्न भागों से आए रंग बिरंगे और चमकदार और वास्तविक लोक नृत्य देखने का अनोखा अवसर मिलता है।
बीटिंग द रिट्रीट
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा एबाइडिड विद मी (यह महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कहीं जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्स बजाई जाती हैं, जो काफ़ी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।
naa kewal tera - naa kewal mera ye watan , ye to sabka hai !! bhaaiyo !! sabko apni tarah se rahne , khaane , peene or apne parmatma ko apne tarike se manaane ka ek baraabar haque hai !! lekin uska prchaar karke doosre par thopne ya kisi ko daraane ka haque nilkul bhi nahi hai ...!! jai - hind !! क्यों मित्रो !! आपका क्या कहना है ,इस विषय पर...??
प्रिय मित्रो, ! कृपया आप मेरा ये ब्लाग " 5th pillar corrouption killer " रोजाना पढ़ें , इसे अपने अपने मित्रों संग बाँटें , इसे ज्वाइन करें तथा इसपर अपने अनमोल कोमेन्ट भी लिख्खें !! ताकि हमें होसला मिलता रहे ! इसका लिंक है ये :-www.pitamberduttsharma.blogspoआपका अपना.....पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , आर.सी.पी.रोड , सूरतगढ़ । फोन नंबर - 01509-222768,मोबाईल: 9414657511
देश के 64वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-01-2013) के चर्चा मंच-1137 (सोन चिरैया अब कहाँ है…?) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!