Monday, January 28, 2013

प्रसिद्धि का शार्टकट ........????





हर बार विश्व पुस्तक मेले के आयोजन का होना जैसे एक घटना को घटित कर देता है मुझमें और मैं हो जाता हूँ सतर्क हर तरफ़ चौकन्नी निगाह …………कौन , कहाँ और कैसे छप रहा है , किसने क्या जुगाड किया, किसने पैसे देकर खुद को छपवाया, किसने सच में नाम कमाया और किसने अनुचित हथकंडे अपनाये और पा ली प्रसिद्धि, किसने वर्जित विषय लिखे और पहुँच गये मशहूरियत के मुकाम पर …………देख देख मुझमें खून का उबाल चरम सीमा पर पहुँचने लगता है और मैं डूब जाता हूँ विश्लेषण के गणित में………

लिखना वो भी निरन्तर उस पर उसकी साधना करना, अराधना करना मुझ जैसे निष्क्रिय के बस की बात तो नहीं जब सुबह एक बार तस्वीर के आगे नतमस्तक नहीं होता तो यहाँ इसकी अराधना कैसे की जाये और कौन इन पचडों मे पडे । ये तो गये ज़माने की बातें हैं और आज का वक्त तो वैसे भी इंटरनैट का वक्त है ………जहाँ जैसे ही कोई विचार उतरे चाहे उसमें तुक हो या नहीं सीधा चिपका दो दीवार पर और हो जाओ शुरु अपने मन की भडास निकालना …………अब इसमें कोई मोल थोडे लगता है सो हम भी इसी तरह कर लेते हैं एक दिन में ना जाने कितनी बार अराधना शब्दों की और खुद को साबित कर देते हैं महान लिक्खाड्……आज के वक्त में जो जितना ज्यादा बात करे, चाहे तीखी या मीठी वो ही प्रसिद्धि के सोपान चढता है और वहीँ सबसे ज्यादा चटखारे लेने वालों की भीड नज़र आती है ………बस इस बात को गिरह में बाँध हमने भी जोर -शोर से धावा बोल दिया और लगे बतियाने, ताज़ा -ताज़ा माल परोसने, कभी घर की तो कभी बाहर की बात , तो कभी देश और समाज पर अपने ज्ञान का परचम फ़हराते हम किसी के भी लेखन के बखिये उधेडने में बहुत ही जल्द परिपक्व हो गये …………आहा! क्या दुनिया है ……जब चाहे जिस पर चाहे अपनी भडास निकालो और अपनी पहचान बना लो क्योंकि सीधे रास्ते पर चलकर कितने मुकाम पाते हैं …………उन जैसों को तो कोई पूछता भी नहीं और यदि गलती से कोई पूछ भी ले तो सारे परिदृश्य पर असर पडता हो ऐसा भी नज़र नहीं आता तो सुगम , सरल , सहज रास्ता क्यों ना अपनाया जाये और प्रसिद्धि के मुकाम पर खुद को क्यों ना पहुँचाया जाये और उसका सबसे आसान रास्ता एक ही है …………आप चाहे कवि हों या कथाकार या लेखक आपको आलोचना करना आना चाहिये ………कोई चाँद को चाँद कहे तो भी आपमें उसके नज़रिये को बदलने का दमखम होना चाहिये………जहाँ से उसे चाँद में भी दाग साफ़ - साफ़ नज़र आ जाये और वो आपके लेखन का, आपकी आलोचना का कायल हो जाये और सफ़लता की सीढी का ये पहला कदम है बस इतना काफ़ी है और ये हमने बखूबी सीख लिया और चल पडे मंज़िल की ओर …………

अपनी धुन में हमने भी लिख मारी काफ़ी कवितायें, तुकबंदियाँ और आलेख …………आहा ! एक एक शब्द पर वाह- वाही के शब्दों ने तो जैसे हमारे मन की मुरादों में इज़ाफ़ा कर दिया । बडे - बडे कवियों , लेखकों से तुलना उत्साह का संचार करने लगी ……चाहे पुराने हों या समकालीन ………अब तो हमारा आकाश बहुत विस्तृत हो गया जहाँ हमें हमारे सिवा ना कोई दूसरा दिखता था ………समतुल्य तो दूर की बात थी …………अब जाकर सोचा हमने भी चलो अब छपना चाहिये क्योंकि अभी तक तो एक पहला पडाव ही तो पार किया था …………इंटरनैट महाराज की कृपा से ।

और करने लगे हम भी जुगाड किसी तरह छपने का और पुस्तक मेले में विमोचित होने का …………आहा ! कितना गौरान्वित करता वो क्षण होता होगा जब अपार जनसमूह के बीच खुद को खडे देखा जाये, सम्मानित होते देखा जाये …………बस इस आशा की किरण ने हमें प्रोत्साहित किया और हम चल पडे ………यूँ तो इंटरनैट महाराज की कृपा से काफ़ी प्रकाशन जानने लगे थे और छापते भी थे मगर अकेले अपना संग्रह छपवाना किसी उपलब्धि से कम थोडे था सो नामी- गिरामी प्रकाशनों से बात करके सबसे बडे प्रकाशन के द्वारा खुद को छपवाने का निर्णय किया और साथ ही प्रचार- प्रसार में भी कोई कमी नहीं होने देने का वचन लिया । दूसरी सबसे बडी बात इंटरनैट महाराज की कृपा से इतने लोग जानने लगे थे कि पुस्तक का हाथों - हाथ बिकना लाज़िमी था क्योंकि सभी आग्रह करते थे कि आपका अपना संग्रह कब निकलेगा ? कब आप उसे हमें पढवायेंगे …सो उन्हें भी आश्वस्त किया और कम से कम हजार प्रतियाँ छपवाने का निर्णय लिया जिसमें से पाँच सौ प्रतियाँ अपने लिये सुरक्षित रखीं क्योंकि चाहने वालों की लिस्ट भी तो कम नहीं थी साथ ही समीक्षा के लिये भी तो कहीं सम्मान के लिये एक - एक जगह दस - दस प्रतियाँ भी भेजनी पडती हैं तो उसके लिये भी जरूरी था और लगा दी अपनी ज़िन्दगी की जमापूँजी पूरे विश्वास के साथ अपनी चिर अभिलाषा के पूर्ण होने के लिये……………

अपने आने वाले संग्रह का प्रचार - प्रसार हमने खुद ही इंटरनैट पर करना शुरु कर दिया ताकि आम जन - जन में , देश क्या विदेशों में भी सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे संग्रह का ही डंका बजे और सब तरफ़ से बधाइयोँ का ताँता लग गया ………शुभकामना संदेशों की बाढ आ गयी …………और हमारा मन मयूर बिन बादलों के भी नृत्य करने लगा ………एक पैर धरती पर तो दूसरा आकाश में विचरण करने लगा …………संग्रह के आने से पहले ही उसकी प्रसिद्धि ने हमारे हौसलों मे परवाज़ भर दी और हम स्वप्नलोक में विचरण करने लगे …………पुस्तक के छपने से पहले ही उसकी समीक्षायें छपवा दीं अपने जानकारों द्वारा ………यानि हर प्रचलित हथकंडा अपनाया ताकि कोई कमी ना रहे …………

और फिर आ गया वो शुभ दिन जिस दिन हमारे संग्रह का लोकार्पण होने वाला था …………बेहद उत्साहित हमारा ह्रदय तो जैसे कंठ में आकर रुक गया था , पाँव जमीन पर चलने से इंकार करने लगे थे मगर जैसे तैसे खुद को संयत किया आखिर ये मुकाम यूँ ही थोडे पाया था काफ़ी मेहनत की थी …………खुद को समझाया और चल दिये लोकार्पण हाल की तरफ़ …………खचाखच भीड से भरा हाल , कैमरे, विभिन्न मैगज़ीनों अखबारों के  पत्रकार आदि , नामी गिरामी हस्तियाँ और उनके बीच खुद को बैठा देखना किसी स्वप्न के साकार होने से कम नहीं था …………और फिर वो क्षण आया जब हमारी पुस्तक का लोकार्पण हुआ और मुख्य अतिथि ने अपना वक्तव्य दिया …………बस वो क्षण जैसे हमारे लिये वहीं ठहर गया जैसे ही मुख्य अतिथि ने कहा यूँ तो इतने संग्रहों का विमोचन किया और पढे भी और उन पर अपना वक्तव्य भी दिया मगर ऐसा संग्रह हाथ से आज तक नहीं गुजरा …………ये सुनते ही हमारे अरमान थर्मामीटर मे पारे की तरह चढने लगे …………आगे उन्होने कहा …………आज़ इंटरनैट बाबा की कृपा से रोज नये - नये लिक्खाड खुद को साबित करने में जुटे हैं । यहाँ तक कि जैसा लिखने वाले हैं वैसे ही वाह वाही करने वाले हैं वहाँ जो हर लेखक को महान कवि साबित करने मे जुटे हैं । इस इंटरनैट क्रांति ने आज रचनाओं का परिदृश्य ही बदल दिया है , कोई भी ना तो मनोयोग से लिखता है और ना ही मनोयोग से कोई उसे पढता है , सब जल्दी में होते हैं कि इसे पढ लिया अब दूसरे को भी आभास करा दें हम तुम्हें पढते हैं ताकि वो भी आप तक पहुँचता रहे और आपका खुद को तसल्ली देने का कारोबार चलता रहे । जब ऐसा वातावरण होगा जहाँ रचनायें सिर्फ़ वक्ती जामा पहने चल रही हों तो कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वहाँ से कोई महान कवि या लेखक का जन्म होगा सिर्फ़ कुछ एक आध को छोडकर । कोई कोई ही पूरी लगन , मेहनत और निष्ठा से अपने कार्य को अंजाम देता है और प्रसिद्ध भी होता है …………उनका इतना कहना था और हमारा दिल तो बल्लियों उछलने लगा और लगा आज हमारे कार्य का सही मूल्यांकन हुआ है , अब हमें प्रसिद्ध होने से और किताब के बिकने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि जाने माने कवि , आलोचक जब हमारे बारे में ऐसा कहेंगे तो ये सर्वविदित है कि हर कोई उस संग्रह को अपनी शैल्फ़ में सहेजना चाहेगा ………हम अपने ख्यालों के भंवर में अभी डूब -उतर ही रहे थे कि उनकी अगली पंक्ति तो जैसे हम पर , हमारे ख्यालों पर ओलावृष्टि करती प्रतीत हुयी जैसे उन्होंने कहा कि बचकानी तुकबंदियाँ , बेतुकी कवितायें , बे -सिर पैर की रचनाओं से लबरेज़ ये संग्रह सहेजने तो क्या पढने के योग्य भी नहीं है …………हमारे तो पैरों तले जमीन ही खिसक गयी …………कहीं गलत तो नहीं सुन लिया , कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे ये देखने को खुद को ही चिकोटी काटी तो अहसास हुआ नहीं हम ही हैं ये ……हमारी तो आशाओं और सपनों की लाश का ऐसा वीभत्स पोस्टमार्टम होगा हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था ………तो क्या जो दाद हमें इंटरनैट महाराज की कृपा से मिला करती थी वो सब झूठी थी, जो दोस्त बन सराहते थे वो सब झूठे थे ……… सोचते - सोचते हम कब तक जमीन पर बैठे रहे पता ही नहीं चला ………वो तो भला हो वहाँ के सिक्योरिटी आफ़ीसर का जो उसने हमें हिला कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो देखा पूरा हाल खाली था और हम अपने 1000 किताबों के संग्रह के साथ अकेले अपने हाल पर हँस रहे थे …………कल तक दूसरों की आलोचना करने वाला , प्रसिद्धि के लिये अनुचित हथकंडे अपनाने वाला आज जमीन पर भी पाँव रखने से डर रहा था , आज उसे अपनी वास्तविक स्थिति का बोध हुआ था और जो उसने दूसरों पर कीचड उछाली थी उसे खुद पर महसूस किया था ………………और सोच रहा था ………प्रसिद्धि का शार्टकट वाकई में शार्ट होता है ……………

1 comment:

  1. सही विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने इस आलेख में!

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"निराशा से आशा की ओर चल अब मन " ! पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)

प्रिय पाठक मित्रो !                               सादर प्यार भरा नमस्कार !! ये 2020 का साल हमारे लिए बड़ा ही निराशाजनक और कष्टदायक साबित ह...