" फार्मूलों " पर जिंदगी बसर करने वाले सभी मित्रों को " हिसाब " से नमस्कार !!
U.P.A.सरकार के चार वर्ष पूरे हो गए , नहीं नहीं मनमोहन सरकार के चार साल पुरे हुए ,न- ना -ना सोनिया जी के नेत्रित्व के नो साल पुरे हुए ....!! खुशियाँ मनाओ जी - भंगड़े पाओ .......चाहे तो घोटालों की ख़ुशी मनाओ या फिर चीन - पाकिस्तान - श्रीलंका - नेपाल और बंगला देश से " कूटनीतिक " मार खाने की ???? गरीबों का खून चूस कर अमीरों को दान देने की या आरक्षण से पीड़ित स्वर्ण - समाज की ???? भटकते युवाओं की बेरोज़गारी की या फिर असुरक्षित महिलाओं की ???? माफियाओं से पीड़ित समाजसेवियों की या आठवीं तक बिना पढ़े पास होकर आगे ना पढ़ पाए विद्यार्थियों के अन्धकार मय भविष्य की .......??? जनता तो कहती है कि इस बात की खुशियाँ मनाओ कि मनमोहन सरकार के अब केवल चन्द महीने ही बचे हैं !! जल्द छुटकारा मिलने वाला है ????
मनमोहन से लोग इतने दुखी हो चुके हैं कि सब चाहते हैं कि भले ही कोई " साम्प्रदायिक व्यक्ति " ही क्यों ना चुनना पड़े चुनेगे लेकिन वो ठोस और तुरंत निर्णय लेने वाला व्यक्ति होना चाहिए !! ये सरदार जी तो कभी प्रधानमंत्री जैसे दिखाई दिए और ना ही P.M. जैसा बोले ??? इनके मंत्री ही इनको नहीं पूछते तो जनता और विश्व के नेता भला कैसे इनका मान सन्मान करेंगे ???
" ढपोल - शँख " प्रधानमंत्री शायद इसी लिए बनाया हमारी समझदार सोनिया जी ने ..???
इंटरनेट के सभी माध्यमों पर लिखते - पढ़ते कब 4वर्ष पूरे हो गए पता ही नहीं चला !! आप मेरे ब्लॉग "5th pillar corruption killer"जिसका लिंक ये है :-www.pitamberduttsharma.blogspo t.com. को इतना महत्त्व दे रहे हैं कि मैं आप के प्यार में अभिभूत हुआ पाता हूँ अपने आपको !! मैं अपने मित्रों की रचनाएँ भी पसंद आने पर आप सबके संग ब्लॉग के साथ साथ गूगल +,मेरे पेज़, फेसबुक और उसके कई ग्रुप्स में भी शेयर करता हूँ !! जिन्हें आप सेंकडों की गिनती में रोज़ाना पढ़ते है , लाईक करते हैं और अपने अनमोल कोमेन्ट्स भी लिखते हैं !! जिन्हें मैं आपके आशीर्वाद के रूप ग्रहण कर दिशा निर्देश पाता हूँ !! मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका प्यार ता उम्र मुझे इसी प्रकार से मिलता रहेगा !!
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पीताम्बर दत्त शर्मा, हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार , सूरतगढ़ . फोन न. -01509-222768,मो.+919414657511 .
आप सबको ढेर सारी शुभकामनाएं !!सदा प्रसन्न रहें !! नए मित्र शीघ्र अपनी फ्रेण्ड-रिक्वेस्ट भेजें !!
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" ढपोल - शँख " प्रधानमंत्री शायद इसी लिए बनाया हमारी समझदार सोनिया जी ने ..???
प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने जो भी फैसला लिया, वह इस देश के ग़रीब के खिलाफ और अमीर के पक्ष में गया, क्योंकि प्रधानमंत्री ने बेहिचक अमेरिकन इकोनॉमिक एजेंडा इस देश में निर्ममता से लागू किया, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि संसद इसके ऊपर बौखलाई नहीं और एक भी सांसद ने इस निरंकुशता के खिलाफ इस्ती़फा देने की धमकी तक नहीं दी. प्रधानमंत्री ने यह कहा कि उनके ऊपर अगर कभी भी छींटा आएगा, तो वह न केवल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे, बल्कि सार्वजनिक जीवन से संन्यास भी ले लेंगे. अब देखिए, हिंदुस्तान का सबसे बड़ा घोटाला कोल ब्लॉक के आवंटन में हुआ, जिसे सबसे पहले चौथी दुनिया ने प्रमुखता से छापा और हमने सरकारी काग़ज़ों के खुलासे के साथ यह लिखा कि यह घोटाला 26 लाख करोड़ का है, लेकिन सीएजी ने सरकारी दबाव में इसे 1 लाख, 76 हज़ार करोड़ का घोटाला कहा. आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री ने इस पर कुछ भी नहीं कहा. ख़ामोश बैठे रहे. हालांकि जिस समय घोटाला हुआ, उस समय प्रधानमंत्री देश के कोयला मंत्री थे. सारे ़फैसले उनके दस्तखत के साथ लागू हुए और ये घोटाले प्रधानमंत्री के दस्तखत से ही हुए !!
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का यह पहला उदाहरण है कि जब इस देश के प्रधानमंत्री अपना पूरा वक्त राज्यसभा का सदस्य रहते हुए बिता गए. उसके पहले उन्होंने जब-जब लोकसभा का चुनाव लड़ा, वह इस चुनाव में हारे. प्रधानमंत्री रहते हुए जो व्यक्ति लोकसभा का चुनाव लड़ने की हिम्मत न करे और वह 120 करोड़ लोगों के नेता होने का दावा करे, तो शायद यह इस देश के लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना है. और इस सवाल को किसी भी दल ने मुद्दा नहीं बनाया, क्योंकि यदि यह मुद्दा बनता, तो फिर यह सवाल भी खड़ा होता कि क्या सचमुच प्रधानमंत्री नैतिक रूप से यह कह सकते हैं कि उनके असम के घर का पता, सचमुच उनके घर का पता है? क्या उस घर में वह कभी एक महीना भी रहे? क्या उनकी पत्नी कभी वहां रहीं? क्या उनकी बेटियां या बहनें वहां कभी रहीं? नहीं रहीं. हर आदमी जानता है कि जो नैतिक परंपराएं पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री एवं इंदिरा गांधी ने डालीं, उन परंपराओं की धज्जियां सदन के भीतर प्रधानमंत्री के रूप में बैठने वाले व्यक्तिने उड़ा दीं.
संसद के भीतर कोयला घोटाले के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री का इस्ती़फा मांगा और इससे इसीलिए संसद की कार्रवाई बाधित हुई, लेकिन यहां एक सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति मे भारतीय जनता पार्टी के सारे सांसद लोकसभा से सामूहिक इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? जिस संसद में वे न कोई आवाज़ उठाते हैं, जिस संसद में न कोई चर्चा करवा सकते हैं और जहां उनकी किसी भी मांग को गंभीरता से नहीं लिया जाता, उस संसद में भारतीय जनता पार्टी के लोग आखिर बैठे क्यों हैं? यह सवाल केवल भारतीय जनता पार्टी का नहीं है, बल्कि यह सवाल तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यू, शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के ऊपर पर भी है. दरअसल, ये सारे लोग इस संसद को सचमुच ख़ुद गंभीरता से नहीं लेते. इसीलिए इस संसद में जब भी आम जनता से जुड़े सवालों पर बहस होती है, उस समय ये सारे लोग सदन में होते ही नहीं हैं. लोकसभा टीवी की सारी कार्रवाई इसकी गवाह है (Santosh Bhartiya, Chauthi duniya)
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