Monday, July 1, 2013

" नेत्रित्व " की क्षमता खोते ये हमारे आधुनिक नेता , और "कार्य" करने की क्षमता खोते ,आज के कार्यकर्ता ....!!

नेत्रित्व की क्षमता खोते , नेताओं की नेतागिरी के " शिकार " हुए सभी मित्रों को मेरा हार्दिक नमस्कार !!
          भारत देश का ये बड़ा ही दुर्भाग्य है कि मजबूत तरीके से देश के नेत्रित्व करने वालों का आज देश में अभाव हो चला है ! कोई भी राजनितिक दल हो उसमे एक-दो या मुश्किल से पांच चेहरे ही वास्तविक नेता नज़र आते हैं ! बाकी तो सब पिछलग्गू ही हैं !! जो अपनी बात भी अपने नेत्रित्व के आगे नहीं रख पाते ,वो भला आम जनता की बात अपने नेत्रित्व को कैसे समझा पाएंगे ??
           आज सरकार जो योजनायें अपनी मर्ज़ी के मुताबिक बनाती है,जिसमे उनके राजनितिक दल और सहयोगी दलों को ज्यादा चन्दा मिलता हो,उन्ही योजनाओ और निर्णयों को लागू किया जाता है,और पिछलग्गू नेता भी वो ही गीत गाते फिरते हैं !!इनके अपने विचार कुछ भी नहीं होते !! ये नेता  तो सिर्फ जनता और कार्यकर्ताओं को "सुचना" देने वाले माध्यम मात्र हैं !! फलाना नेता फलानी तारीख को फलानी जगह पधार रहा है !!!!!!!!! रिपोर्टर लोग खबर लगा देते हैं , विशेष प्रकार के कार्यकर्ताओं को फोन करके बुलाया जाता है , आम जनता को बसों पर धो कर लाया जाता है, सारे शहर में छुटभईये नेताओं की फोटो के साथ बड़े नेता के स्वागत बोर्ड लग जाते हैं,और इस तरह से बड़ा नेता माला पहन कर ,अपना भाषण देकर और कईयों के साथ अपनी फोटो खिंचवाकर चलता बनता है !! दोनों नेता अपने-अपने कारणों से प्रसन्न हो जाते हैं !! बाद में चमचे लोग आकलन करके आम लोगों को समझाते फिरते हैं कि हमारे नेता का प्रभाव बढ़ा और उसी दल के दुसरे नेताओं की तो बड़े नेताओं के सामने किरकिरी हो गयी !!

                ये तो है नेताओं की असलियत !!!!अब देखिये कार्यकर्ताओं की कहानी .....!! 1952 के बाद भारत में राजिनितक दल तीन विचारधाराओं पर बने ! एक तो कोंग्रेस जो अंग्रेजो की विचारधारा पर आगे बढ़ी , दूसरा जनसंघ जो भारत के सनातन धर्म पर चलने वाला राजनितिक दल बना और तीसरी कोम्युनिस्ट पार्टिया जो समाजवाद व उंच-नीच को लेकर चलीं ! जिसको जो राजनितिक दल व उसकी विचारधारा भाई वो उसी दल में शामिल होगया और तन-मन-धन से सेवा समझ कर अपने नेताओं को अपना वोट भी देता रहा और दिलाता रहा !! कुछ सालों तक कार्यकर्ताओं और नेताओं का तालमेल बेहतर तरीके से चला !! सभी राजनितिक दलों के नेता अपने कार्यकर्ताओं के घर जाते थे , चर्चाएँ होती थीं और फिर निर्णय लिए जाते थे !! लेकिन धीरे-धीरे स्वार्थ बढ़ता गया और असूल दम तोड़ते गए और आज हालत ये हैं कि सभी दलों के कार्यकर्ताओं को राते हुए शरेआम देखा जा सकता है !! सब एक दुसरे से पूछ रहे हैं कि  से  हो गया ,और किया  क्या जाए ??
              ना तो कार्यकर्त्ता नेता को कुछ समझता है और नाही नेता कार्यकर्त्ता को कोई भाव दे रहा है !! सब नेताओं ने अपने गुर्गे - चमचे पाल रख्खे हैं बस वोही एक दुसरे के पालनहार बने हुए हैं !! और इनका जोड़ " भ्रष्टाचार " नामक फेविकोल से जुडा हुआ है !! जो तोड़ने से भी नहीं टूटता !! अब कार्यकर्ताओं हेतु कोई काम भी तो नहीं बचा !
सब काम तो आजकल इवेन्ट मनेजमेंट कम्पनिया करने लग गयी हैं !! विचारधाराएँ कंही खो चुकी हैं सिर्फ पैसा प्रमुख हो गया है , क्या किया जाए ......!!????
           इसका सिर्फ एक ही हल है ,और वो ये है की नेताओ के भाषण सुनने जाना बंद करदो !! उनको माला पहननी बंद करदो .......अक्ल ठिकाने आ जाएगी ससुरों की ...हाँ नहीं तो ....!!
              आप ही बताइए मित्रो !!
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आपका मित्र ,
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हेल्प-लाईन-बिग-बाज़ार ,
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सूरतगढ़ ,राजस्थान ,09414657511.

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