"अक्ल के सभी दरवाज़े खुले " रखने वाले मित्रो,प्रणाम !
समाज को सही दिशा दिखाना पहले काम ब्राह्मणों का हुआ करता था !! जैसे जैसे उन्होंने इस काम के साथ - साथ अपना स्वार्थ पूरा करना शुरू कर दिया वैसे - वैसे लोग उनसे दूर भागने लगे । फिर ये काम धार्मिक डेरे वाले , साधू-संतों,और छोटे-छोटे धर्मों ने सम्भाला । लेकिन कुछ ही समय पश्चात इनके भी चेले बढ़ने लगे और छोटे छोटे हिस्सों में ये बाँटने लगे तो इसी काम को समझदार "पत्रकारों ने संभाला .....लेकिन पिसा ऐसी चीज़ है की हर आदमी को बदल देता है । हुआ भी यही ,ये पवित्र कार्य पत्रकारिता भी बाज़ार बन गयी है !! बड़े-बड़े पत्रकार नोकरी करने पर मजबूर हो गए हैं । शायद इसी वजह से पत्रकारों ने अपनी सोच को भी सीमित कर दिया है !!??
आज जन्हा देखो एक तरह के ही समाचार प्रकाशित किये जा रहे हैं ...। कुछ समचार पात्र हैं जो सब तरह के परिशिष्ट निकलते हैं लेकिन वो भी प्रायोजित ही होते हैं ??? क्या धार्मिक , सामाजिक विषयों को पढने वाले पाठक कम हो गए ???? नहीं जी बिलकुल नहीं । फेस-बुक पर देखिये कितनी धार्मिक सामग्री होती है सद विचारों की भी भरमार होती है !!
तो क्या ये समझा जाए की ये जिम्मेदारी अब फेस-बुक के कन्धों पर आ गयी है इक्कसवीं सदी में । इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो धार्मिक विषयों को तो ऐसे दिखाना शुरू कर दिया है जैसे टाईम पास करने हेतु कोई धमाकेदार सीरियल दिखा रहे हों ????? सबको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना अति आवश्यक है ।।
तो मित्रो आप ही बताइये की सिमित सोच के साथ हम अपने कर्तव्यों का पालन कैसे कर सकते हैं ??? मैं हमारे पत्रकार और लेखक मित्रों से इस ब्लाग और ग्रुप के ज़रिये निवेदन करना चाहता हूँ की कोई आपको रोके या अपनी मर्ज़ी के मुताबिक लिखवाना चाहे तो उसे ठोस शब्दों में इनकार कर दीजिये ....और समाज को जिस प्रकार के लेखन की आवश्यकता है आज बिलकुल वैसा ही " सार्थक " लिखिए ...!!
" 5th pillar corrouption killer "नामक ब्लॉग और ग्रुप के आज ही सदस्य बने , ज्वाईन करें और लाग आन करें www.pitamberduttsharma.blogspot.com. आज ही इस पर लिखे लेखों को पढ़िए । अगर आपको बढ़िया लगें तो उन पर अपने अनमोल विचार ब्लॉग पर जाकर उसके नीचे लिखें और अपने सभी फेस-बुक मित्रों को भी शेयर करके भेजें !! धन्यवाद !! जय माता की !! खोल दो सारे दरवाज़े .......!!!!!!
समाज को सही दिशा दिखाना पहले काम ब्राह्मणों का हुआ करता था !! जैसे जैसे उन्होंने इस काम के साथ - साथ अपना स्वार्थ पूरा करना शुरू कर दिया वैसे - वैसे लोग उनसे दूर भागने लगे । फिर ये काम धार्मिक डेरे वाले , साधू-संतों,और छोटे-छोटे धर्मों ने सम्भाला । लेकिन कुछ ही समय पश्चात इनके भी चेले बढ़ने लगे और छोटे छोटे हिस्सों में ये बाँटने लगे तो इसी काम को समझदार "पत्रकारों ने संभाला .....लेकिन पिसा ऐसी चीज़ है की हर आदमी को बदल देता है । हुआ भी यही ,ये पवित्र कार्य पत्रकारिता भी बाज़ार बन गयी है !! बड़े-बड़े पत्रकार नोकरी करने पर मजबूर हो गए हैं । शायद इसी वजह से पत्रकारों ने अपनी सोच को भी सीमित कर दिया है !!??
आज जन्हा देखो एक तरह के ही समाचार प्रकाशित किये जा रहे हैं ...। कुछ समचार पात्र हैं जो सब तरह के परिशिष्ट निकलते हैं लेकिन वो भी प्रायोजित ही होते हैं ??? क्या धार्मिक , सामाजिक विषयों को पढने वाले पाठक कम हो गए ???? नहीं जी बिलकुल नहीं । फेस-बुक पर देखिये कितनी धार्मिक सामग्री होती है सद विचारों की भी भरमार होती है !!
तो क्या ये समझा जाए की ये जिम्मेदारी अब फेस-बुक के कन्धों पर आ गयी है इक्कसवीं सदी में । इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने तो धार्मिक विषयों को तो ऐसे दिखाना शुरू कर दिया है जैसे टाईम पास करने हेतु कोई धमाकेदार सीरियल दिखा रहे हों ????? सबको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना अति आवश्यक है ।।
तो मित्रो आप ही बताइये की सिमित सोच के साथ हम अपने कर्तव्यों का पालन कैसे कर सकते हैं ??? मैं हमारे पत्रकार और लेखक मित्रों से इस ब्लाग और ग्रुप के ज़रिये निवेदन करना चाहता हूँ की कोई आपको रोके या अपनी मर्ज़ी के मुताबिक लिखवाना चाहे तो उसे ठोस शब्दों में इनकार कर दीजिये ....और समाज को जिस प्रकार के लेखन की आवश्यकता है आज बिलकुल वैसा ही " सार्थक " लिखिए ...!!
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